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Friday, February 10, 2012

अमिताभ बच्चन -1





 हिंदी सिनेमा के किसी भी कलाकार की लोकप्रियता के सही मापदंड कॉलेज के विद्यार्थियों के पास होते हैं। 90 के दशक में जब मैं कॉलेज का छात्र था, तब मेरे पास भी नायक-नायिकाओं का मापदंड था। लगभग हरेक अभिनेता को मैं और मेरे दोस्त एक सही पैमाने पर माप दिया करते थे। ‘ठंडा मतलब कोकाकोला’ की तरह हमारा मन ‘गरम मतलब धरम पाजी’ था।


इस समय प्रेम-दृश्यों के मामले में लगभग सभी अभिनेता समान ही थे। रोमांस के राजा तो एक ही थे... ‘राजेश खन्ना’। चॉकलेट भी जिसकी तुलना में कम चॉकलेटी लगे, ऐसे ‘ऋषी कपूर’ थे तो मानव जैसे किसी वानर में से निकल आया हो, ऐसे उछल-कूद करने वाले हीरो थे ‘जितेंद्र’ मतलब ‘जंपिंग जैक’।


इसके उलट एक अभिनेता... आग की लपटों की तरह, लुहार की भट्टी से निकलती ज्वाला की तरह, दुर्वासा के आधुनिक अवतार की तरह, अपनी आवाज से डराते और दहाड़ते हुए एंग्री यंग मैन थे...‘अमिताभ बच्चन’।


इस समय हमारी यह दृढ़ मान्यता थी कि अमिताभ कभी प्रेम दृश्य के रोल अच्छी तरह से कर ही नहीं सकते। और अमिताभ ऐसा करें, हम यह चाहते भी नहीं थे। फिल्म ‘आनंद’ को ही ले लीजिए, जिसमें बाबु मोशाय उनके मरीज कम डॉक्टर ज्यादा नजर आते हैं। अमिताभ पूरी फिल्म में मौन-मौन, निराश-निराश से दिखाई देते हैं, और उनके मरीज यानी की राजेश खन्ना ही उनकी हंसी उड़ाते हुए नजर आते हैं।


मुझे याद है कि उस जमाने में जब हम कभी घूमने-फिरने निकला करते थे और हमारी नजर किसी प्रेमी युगल पर पड़ती थी, अगर लड़का-लड़की से दो फिट की दूरी पर बैठे हवा में बातें करते हुए नजर आता था। तब हमारे पास एक अचूक कमेंट हुआ करता था.. ‘लो, इसका हाल तो बाबू मोशाय के डॉक्टर की तरह है।’


फिल्म ‘शोले’ में भी अमिताभ की यही छाप बरकरार रही। शाम को जय (अमिताभ) जब अपना माउथ ऑर्गन बजाते हैं तब ठाकुर संजीव कुमार की विधवा बहू जया कुछ न कुछ काम करते हुए घर से बाहर निकलती हैं और अमिताभ को देखकर शरमा जाती हैं। मुझे याद है कि सिनेमाघर में बैठी कॉलेज की छात्राएं यह दृश्य देखकर हंस पड़ती थीं।


‘इस अमिताभ को तो प्यार करना आता ही नहीं! बाकी दूसरे हीरो को देखो।’ लेकिन इसके बाद बाजी पलट गई। फिल्म ‘कभी-कभी’ रिलीज हुई और यंग्री यंग मैन अब प्रेम पुजारी बन गया दिखाई देने लगा। ‘कभी-कभी’ के प्रारंभिक दृश्य में राखी (फिल्म में उनका नाम पूजा था) के साथ उत्कट प्रेम दृश्य में अमिताभ इतने जानदार और शानदार लगे कि देश भर के युवा अपने आपको ‘अमितजी’ ही समझने लगे। इस फिल्म के बाद तो वे युवाओं के साथ-साथ युवतियों के दिलों की भी धड़कन बन गए।


कुछ वर्षो बाद फिल्म ‘सिलसिला’ रिलीज हुई। इस फिल्म के बाद तो देश के सारे प्रेमी युवा यही बोलने लगे... ‘तुम होती तो ऐसा होता, तुम होतीं तो वैसा होता...! मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं...!’


बात करते हैं वर्ष 1979-80 की तो अब अमिताभ के साथ एक खूबसूरत अभिनेत्री का नाम जुड़ चुका था। (फिल्म ‘सिलसिला’ इसके बाद आई थी) हर जगह चर्चा थी...अमिताभ और रेखा की।


कहां ‘आनंद’ का शुष्क बाबू मोशाय और अब वही देश का प्रसिद्ध प्रेमी पुरुष ! क्या अमिताभ की हाथ की रेखाओं में रोमांस की खूबसूरत रेखा पहले से ही थी?


शर्मिला टैगोर और अमिताभ की पहली मुलाकात...


कोलकाता में हुई एक घटना...युवा अमिताभ इस समय ‘ब्लैकर्स’ नामक कंपनी में नौकरी किया करते थे। शाम को नौकरी के बाद दोस्तों के साथ पार्टियों का दौर जमता था। इसी तरह एक बार एक पार्टी में अमिताभ की नजर एक सुंदर युवती पर पड़ी। अमिताभ उसे देखते ही रह गए। हालांकि युवती की ऊंचाई उनकी तुलना में कम थी, लेकिन वह थी बहुत सुंदर। दूसरी तरफ अमिताभ अपने दिल में स्त्रियों के लिए हमेशा ही एक गुप्त आसन बिछाए रखते थे।


अमिताभ उस युवती के पास पहुंच गए, जबकि उनके दोस्त पार्टी में अन्य लड़कियों के साथ शराब पी रहे थे, झूम रहे थे। अमिताभ ने युवती के पास पहुंचते ही पूछा...‘शैल वी डांस टुगेदर?’ युवती ने उन्हें गौर से देखा। अमिताभ के इस अचूक निवेदन को वे टाल नहीं पाई और बोली.. ‘ओह श्योर!’ अमिताभ उनकी कमर में हाथ डालकर झूमने लगे।


नाचते-नाचते अमिताभ ने युवती से पूछा... ‘क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं?’

‘क्यों नहीं,?’ गालों में जैसे पूरा कोलकाता डूब जाए, ऐसे गड्ढे पड़े और मुंह से शब्द निकले...‘मैं शर्मिला टैगोर हूं।’


यह आसानी से यकीन न कर पाने वाली घटना है, लेकिन सच है। शर्मिला इस समय हिंदी फिल्मों में अपने पैर जमा चुकी थीं। अनेक सफल फिल्में कर चुकी थीं और उनका नाम प्रसद्धि हो चुका था। लेकिन अमिताभ उनसे ही पूछ बैठे कि ‘क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं?’।


सुंदर स्त्री-मित्रों की कमी हमारे शहंशाह को कभी नहीं रही। कोलकाता में ही एक ‘माया’ नाम की लड़की उनके पीछे पागल थी। माया भट्ट... सिर्फ अमिताभ ही नहीं, बल्कि माया को देखने वाला कोई भी युवक उसके पीछे पागल हो जाया करता था। माया इस समय अपनी छोटी बहन के साथ ‘एमच्योर्स’ नामक कंपनी के नाटकों में रोल किया करती थी।

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